भारत सरकार द्वारा शुरू की गई यह National Bamboo Mission योजना बांस की खेती को बढ़ावा देने, किसानों की आय बढ़ाने और ग्रामीण उद्योगों को सशक्त करने के लिए लाई गई है। इसकी शुरुआत वर्ष 2006-07 में हुई थी, लेकिन इसे 2018-19 में दोबारा पुनर्गठित किया गया ताकि यह नई तकनीकों, बाजार की मांग और आत्मनिर्भर भारत के उद्देश्य के अनुसार अधिक प्रभावी हो सके। इस योजना का मुख्य उद्देश्य है कि भारत को बांस उत्पादन और व्यापार के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
बांस को वन अधिनियम से हटाने का महत्व
पहले बांस को भारतीय वन अधिनियम, 1927 के तहत पेड़ माना जाता था, जिससे उसकी कटाई और परिवहन में कई कानूनी अड़चनें थीं। वर्ष 2017 में सरकार ने इसे उस अधिनियम से बाहर कर दिया, जिससे अब बांस को गैर-लकड़ी वन उत्पाद माना जाता है। इससे बांस की खेती और व्यापार आसान हो गया है और इसी बदलाव ने राष्ट्रीय बांस मिशन को मजबूती दी है।

किसानों को मिलने वाले लाभ और सब्सिडी
राष्ट्रीय बांस मिशन के तहत किसानों को बांस की खेती के लिए ₹1.2 लाख प्रति हेक्टेयर तक की सहायता दी जाती है। यह राशि तीन साल में चरणबद्ध तरीके से दी जाती है। इसके अलावा, नर्सरी स्थापित करने वालों को ₹10 से ₹25 लाख तक की आर्थिक सहायता मिलती है। यदि कोई व्यक्ति बांस प्रोसेसिंग यूनिट लगाना चाहता है तो उसे भी अनुदान दिया जाता है। योजना के तहत बांस कटाई, भंडारण, प्रसंस्करण और मार्केटिंग से जुड़े उपकरणों के लिए भी सहायता दी जाती है।
योजना से लाभान्वित होने वाले पात्र लाभार्थी
इस योजना का लाभ केवल किसानों तक सीमित नहीं है। किसान, स्वयं सहायता समूह (SHG), किसान उत्पादक संगठन (FPO), सहकारी समितियां, पंचायतें, स्टार्टअप और निजी क्षेत्र की कंपनियां भी इस योजना के तहत लाभ उठा सकती हैं। विशेष रूप से पूर्वोत्तर भारत, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में इस योजना का क्रियान्वयन अधिक प्रभावी रूप से किया जा रहा है।
बांस से बनने वाले उत्पादों और बाजार की संभावनाएं
बांस से केवल फर्नीचर नहीं, बल्कि अगरबत्ती, सजावटी वस्तुएं, घरेलू उत्पाद, कपड़े, निर्माण सामग्री, बायो ईंधन और कई अन्य चीजें बनाई जाती हैं। बांस उत्पादों की बढ़ती मांग ने बाजार में एक नया अवसर पैदा किया है। सरकार इन उत्पादों के प्रचार-प्रसार और विपणन के लिए एक्सपो और मेलों का आयोजन भी करती है।
प्रशिक्षण और तकनीकी सहायता का प्रावधान
राष्ट्रीय बांस मिशन के अंतर्गत किसानों और उद्यमियों को तकनीकी प्रशिक्षण भी प्रदान किया जाता है। यह प्रशिक्षण बांस की खेती, प्रबंधन, कटाई, भंडारण, प्रोसेसिंग और मार्केटिंग से जुड़ा होता है। इस कार्य के लिए राज्य कृषि विश्वविद्यालय, ICAR संस्थान और KVK जैसे तकनीकी केंद्रों की सहायता ली जाती है। इस प्रशिक्षण का उद्देश्य किसानों को आत्मनिर्भर बनाना है ताकि वे स्वयं अपने बांस उत्पाद तैयार कर बाजार में बेच सकें।
आवेदन प्रक्रिया और दस्तावेज़
योजना का लाभ उठाने के लिए इच्छुक व्यक्ति को राज्य के कृषि विभाग या nbm.nic.in पोर्टल पर जाकर आवेदन करना होता है। आवेदन के समय आधार कार्ड, भूमि संबंधित दस्तावेज़, बैंक खाता विवरण, पासपोर्ट साइज फोटो और योजना से संबंधित प्रस्ताव जमा करना होता है। आवेदन की स्वीकृति के बाद संबंधित विभाग द्वारा योजना के तहत सहायता दी जाती है।
वित्तीय प्रावधान और बजट
राष्ट्रीय बांस मिशन पूरी तरह से केंद्र सरकार द्वारा वित्तपोषित योजना है। वर्ष 2023-24 में इस योजना के लिए ₹150 करोड़ से अधिक का बजट आवंटित किया गया। यह राशि राज्यों को उनके प्रस्ताव के अनुसार दी जाती है और राज्य स्तर पर इसके कार्यान्वयन की निगरानी संबंधित विभाग द्वारा की जाती है।
आत्मनिर्भर भारत अभियान से संबंध
राष्ट्रीय बांस मिशन न केवल एक कृषि आधारित योजना है, बल्कि यह ‘आत्मनिर्भर भारत’ की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम भी है। यह योजना ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के नए अवसर पैदा करती है, बांस के आयात पर निर्भरता को कम करती है और स्थानीय स्तर पर बांस आधारित लघु और कुटीर उद्योगों को बढ़ावा देती है।
निष्कर्ष: किसानों और उद्यमियों के लिए सुनहरा अवसर
National Bamboo Mission एक बहुउद्देश्यीय योजना है जो किसानों को न सिर्फ आय बढ़ाने का मौका देती है, बल्कि उन्हें स्वरोजगार और उद्यमिता की दिशा में आगे बढ़ने का भी रास्ता दिखाती है। यदि आप किसान हैं या बांस से जुड़ा व्यवसाय शुरू करना चाहते हैं तो यह योजना आपके लिए एक सुनहरा अवसर हो सकती है।